सोमवार, 30 मई 2011

तुम्हारे लिए........



तुम्हारे दरवाजे पे
जो सूखे फूल हैं
मेरी यादों के...
चुन लेना उन्हें
और दबा देना
किसी किताब में !
एकांत में...
जब पन्ने पलटोगे
तो खुशबू बिखर जायेगी
हर सू..........!! 


(भाई किशोर जी को समर्पित )



शुक्रवार, 27 मई 2011

तुम......




.

न जाने कितने

उतार-चढ़ाव
देखे हमने
इस जीवन में
साथ-साथ,
न जाने
कितनी पूजाएँ,
प्रार्थनाएं
सब कर डालीं
सीता,सावित्री की तरह मैंने,
वह सब करती गयी
जो तुम कहते गए,
लेकिन तुमने...
जो चाहा,
जब चाहा
सब किया !!
और वह सब
करते हुए तुम्हें....
मेरा,मेरी भावनाओं का
ज़रा सा भी
ख्याल न आया !!

कृष्ण,जीजस,हरिश्चंद्र....
और न जाने
कितने ही ऐसे
महापुरुषों का नाम
तुम गिनाते तो रहे
लेकिन.....
सत्यवान और राम
तुम न बन सके !!



गुरुवार, 19 मई 2011

इंसान....






दुनिया में एक इंसान ही  
ऐसा प्राणी है जो  
बुद्धि से तोलता है हर रिश्ते को  
और जो तुलना करता रहता है हरदम...
कभी दूसरों की खुद से,
कभी खुद की दूसरों से भी.
हाँ !
लेकिन अपनी तुलना में  
उसके उदार भाव देखने को मिलते हैं !
वह कभी कृष्ण के चरित्र से
खुद को मिलाता है और  
जिन्दगी के सारे  
साम,दाम,दंड और भेद  
अपनों पर ही अजमाता है,
कभी जीसस के चरित्र के साथ
खुद को सूली पर चढ़ा पाता है,
तो कभी हरिश्चंद्र की तरह  
खुद को सत्यवादी कह कर  
दूसरों पर तरह-तरह के  
आक्षेप भी लगता है !
एक तरह से देखा जाये तो
जुर्म भी खुद तय करता है  
और सजा भी खुद सुनाता है !
लेकिन शायद यह भूल जाता है कि....
इस जिन्दगी से परे भी
एक अदालत है जहाँ.....
न किसी की पैरवी चलती है
न किसी की सुनवाई ही होती है ! 
जहाँ केवल सच देखा जाता है
शब्दों और व्याख्याओं से परे
बस, केवल नंगा सच !!
लेकिन वह दूसरों को
सच्चाई तो दिखता है..
पर खुद की सच्चाई से  
दूर भागता जाता है !
वह नहीं जानता कि  
आँख मूँद कर  
अँधेरे में चोरी-चोरी  
तीर चलाने से कुछ नहीं होता..!
कभी न कभी तो
सच सामने आता ही है !
और यदि न आ पाए तो भी
कोई तो है जो
सारी सच्चाई को आंकता है !!
सूरज की रोशनी में  
जब सच्चाई का सामना होता है
तभी कोई कृष्ण,कोई बुद्ध,कोई जीसस

और कोई हरिश्चंद्र बन पाता है..!!


शनिवार, 14 मई 2011

१३ मई.......... पूज्य श्री श्रीरविशंकर जी के जन्मोत्सव के उपलक्ष में... गुरुजी के श्री चरणों में समर्पित कुछ पुष्प...










गुरु..............


जीवन में जब गुरु मिले
पकड़ लीजिये हाथ !
सांस सांस में राम रहे
कभी न छोड़े हाथ !!

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गुरु मुझको ऐसा मिला
सोये जागे साथ !
जब कभी भी ठोकर लगे
मेरा पकड़ा हाथ !! 

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गुरु मुझको ऐसा मिला
मोहन सूरत जिसकी !
आँख मूँद दर्शन करून
मन में पाऊँ झाँकी !!

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सांवरिया मेरो गुरु
मन में लियो बसाय !
आँख मूँद दरसन करूँ
करूँ प्रेम चित लाय !!

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बलिहारी तेरी गुरु
मन में कियो निवास !
यह सरीर मंदिर भयो
सांस-सांस में आस !!

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गुरु मेरा खुशबू हुआ
तन-मन में बस जाय !
कहाँ गुरु कहाँ स्वयं हूँ
अंतर किया न जाय !!



 

रविवार, 8 मई 2011

कड़वा सच....













मैं रहूँगी तुम्हारे साथ ही
और तुम्हारे बिना भी 
क्योंकि...
आज मैं अपने साथ हूँ !
ये न सोच पाए तुम 
कि..
तुम्हारे साथ में रहने वाले को भी 
ज़रुरत होती है तुम्हारी !!
जबकि हर मुश्किल क्षण में  
सभी ने बराबर की भागीदारी की !
हर रिश्ते में तुम  
कुछ खोजते ही रहे हो !
क्या तलाश रहे हो ?
तुम जानो ???
वो तुम,जो अपनों को कंधा न दे पाए
आज दूसरों के लिए कंधा लिए फिरते हो !
और शायद mutual undarstanding के साथ
कन्धा मिल भी गया है तुम्हें
जहाँ तुम अपना दुखड़ा सुना सको !
और उसे भी ज़रुरत है तुम्हारे रुमाल की 
जिससे वह अपने आंसू पोंछ सके
तुम्हारे कंधे पर सर रख कर रो सके
और इस तरह दोनों के दुःख-दर्द  
जो "अपनों" ने दिए हैं 
कुछ तो कम हो सके !!
लेकिन....
जो दर्द तुमने मुझे दिए हैं 
ऐसा नहीं हो सकता है
उससे तुम आगाह न रहे हो 
तभी तो तुम उस विषय पर 
बात तक करना नहीं चाहते हो .
ऐसा नहीं है कि पुरानी बातों में 
तुम्हे दिलचस्पी नहीं है....
लेकिन वो बातें जो सामने वाले की
भावनाओं से जुड़ जाती हैं
तुम्हारे लिए वही पुरानी बातें
खोखली और बकवास हो जाती हैं 
और खुद के साथ जुड़ते ही 
दिलचस्प और प्रेरणादायक वाकया हो जाती है !
ऐसा ही होता आया है अब तक..!
तुम्हारे दिए हर दर्द को
मुझे अकेले सहना आता है 
यही तो किया है मैंने अब तक !
क्योंकि..
हर मुश्किल पल में 
मैंने तुम्हें खुद से अलग 
दूर खड़ा पाया है
औरों की भावनाओं का 
ध्यान रखने का दम भरने वाले तुम्हें  
कब मेरी भावनाओं का ध्यान रहा है
तुम्हारे सब कटु शब्दों को भी
मैंने शिव की भांति ही पिया है
और उफ़ तक न की.....
किसी को आगाह भी न होने दिया
और तुमने बदले में
मेरे बारे में न जाने
कहाँ-कहाँ क्या-क्या कहा है
आज भी तुम्हारे अपशब्द 
कंठ में समा कर जीवित हूँ
क्योंकि हमेशा ही
मुझे मेरी नज़रों के आगे
कुछ मासूम चेहरे नज़र आते रहे हैं
और उनके भ्रम को बनाए रखने के लिए
मेरे शब्द भी बेजुबान हो जाते हैं
पहले भी यही हाल था
और आज भी हालत बदले नहीं हैं
बस हमारी सोच बदल गई है
मुझे आज भरोसा है अपने आप पर, 
अपने गुरु और ईश्वर पर !
और इसीलिए मैं हूँ 
आज भी तुम्हारे ही साथ 
और तुम्हारे बिना भी !!