सोमवार, 19 जनवरी 2015

इश्क़ की रस्म....





शाम कुछ इस तरह से आई है
ज़िन्दगी जैसे गुनगुनाई है ...!

तीरगी दूर छुप के बैठ गई...

रात दुल्हन सी झिलमिलाई है...!

साथ वो अब मेरे नहीं आता...

उसकी यादों से आशनाई है...!

वो मुझे याद कर परीशां हो...

इश्क़ की रस्म यूँ निभायी है...!

रात 'पूनम' की जब हुई रौशन...

चाँदनी हुस्न में नहाई है...!



19/01/2015

उदयपुर