शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

कृष्ण मेरी दृष्टि में.......

एक मित्र ही आपको आपकी क्षमता का ज्ञान करा सकता है....सखा भाव से ! 
क्षमता को किसी अनुपात में न आंकें...! 
संगत का असर शायद इसे ही कहते हैं...!
मित्र विमलेन्केदु के लेख "संभवामि युगे युगे" ने यह संभव कर दिखाया...!







 कृष्ण मेरी दृष्टि में........

                        अगर कृष्ण को एक चरित्र के रूप में भी देखें तो हम देखते हैं कि हर इंसान उनसे कुछ न कुछ पा ही लेता है...बल्कि देखा जाए तो कुछ भी करके आसानी से उसके गिल्ट से बाहर आने का कृष्ण एक सरल ज़रिया हैं...! कृष्ण का झूठ बोलना...कृष्ण का मैदान छोड़ के भाग जाना...चीर हरण,राधा और गोपियों संग रास रचाना...बस यही उत्तम और सरल उदाहरण इंसान ले पाता है अपनी छोटी बुद्धि से...क्यूँ कि उसे अपने चरित्र में ये सब आसानी से ढूंढें मिल जाता है...इन सब उदाहरणों के साथ कृष्ण बांसुरी बजाते हमारे बीच में प्रस्तुत हैं....! etxra marital affair का कृष्ण जीता-जागता उदाहरण हैं जिससे किसी भी इंसान को ये सम्बन्ध बनाने में न संकोच होता है और न ही किसी तरह का गिल्ट....लेकिन जब इसका परिणाम नज़र आता है तो उसकी जिम्मेदारी हम लेने से मुकर जाते हैं और उँगलियाँ यत्र-तत्र उठ जाती हैं...जबकि कृष्ण ऐसा करते कभी भी दिखाई नहीं देते...!

                              अगर पात्र के रूप में देखें तो कृष्ण का पूरा जीवन विषम परिस्थितियों में गुज़रा...और हर स्थिति में उन्होंने विवेक और सूझबूझ का अतिउत्तम उदहारण प्रस्तुत किया है...और हम इंसानों को जीवन के कई उदाहरण पहले से ही दे दिए हैं कि कम से कम हम उन सब परिस्थितियों से न गुजरें या गुजरें भी तो विवेक और बुद्धि से उसका आसानी से हल निकाल सकें....लेकिन हम भी इंसान ही ठहरे...!इसलिए खुद को शरीर से संबधित क्रिया-कलापों से ही कृष्ण का उदाहरण जोड़ पाते हैं...!


                   मेरे लिए ईश्वर वह शक्ति है जो अपने विभिन्न रूप में हमारे बीच में हर समय उपस्थित है...कभी हमारे सुख में,दुःख में,मनोरंजन में और उत्सव में भी और इसका सारा श्रेय हमारे ऋषियों-मुनियों,पूर्वजों या जिनको भी श्रेय दें,जाता है जिन्होंने इस शक्ति को एक नहीं कई स्वरुप में हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है जिससे इंसान अपने आप से जोड़ पाता है...जो हमें इस जीवन की दुरूह परिस्थितियों में मुस्कुराना सिखाती है..एक आशा की किरण बन के साथ साथ चलती है....कभी देवी-देवता या भगवान के रूप में और कभी गीता,रामायण या वेद-पुराण के रूप में...समाज का हर वर्ग कहीं न कहीं इनमें से कम से कम एक से तो जुड़ा हुआ है ही !

                             कृष्ण कभी थे या नहीं....हम ये तो नहीं जानते....लेकिन उन्हें हम पढ़ते हैं,महसूस करते हैं स्वयं में और शायद इसीलिए देख भी पाते हैं खुली और बंद आँखों से..! कृष्ण हर इंसान (स्त्री/पुरुष) में पूरी तरह मौजूद है....प्रेम और विश्वास के रूप में....!! चारित्रिक रूप में देखें तो अक्सर लोग उन्हें बस प्रेम में ही बाँध देते हैं... विश्वास की कहीं और कभी चर्चा होते कम ही दिखती है....जबकि मेरी दृष्टि में कृष्ण सबसे ज्यादा विश्वस्त रूप में आते हैं...फिर चाहे वो बाल सखा हों,राधा हो या गोपियाँ,रुक्मिणी हो या अनगिनत रानियाँ,पांडव हों या द्रौपदी,कुंती हो या भीष्म,उद्धव हो या सुदामा आदि आदि....एक सार्वभौमिक प्रेम और विश्वास का जीता-जागता उदाहरण हैं खुद कृष्ण.....! अनगिनत उदाहरण हैं हमारे सामने....जहाँ कृष्ण अपनी मुरलिया थामें मुस्कुराते खड़े हैं...! उनसे उन्हीं के किसी रूप से हम कुछ भी आसानी से पा ले रहे हैं....और ये इंसान के बस की बात नहीं है क्यूँ कि इतने सारे aspects किसी एक इंसान में होना possible नहीं है...! कृष्ण का प्रत्येक रूप समाज में उदाहरण के रूप में है...कि इंसानों देखो ऐसा भी होता है...होता आया है और हो सकता है जीवन में...परिस्थितियां हमारे वश में नहीं हैं...स्व में स्थित हो,अपने स्वरुप को पहचानों,कर्ता भाव मिटाओ,अपनी बुद्धि लगाओ,विवेक का इस्तेमाल करो और हर परिस्थिति से बाहर निकलो...लेकिन हम केवल चरित्र में ही उलझ के रह जाते हैं और उनके चरित्र के उदाहरणों का इस्तेमाल उसमें फंस जाने के बाद करते हैं जबकि कृष्ण हमें पहले ही सचेत करते हैं !

                            कृष्ण चरित्र नहीं एक चेतना हैं...एक जीती-जागती समग्र चेतना...एक ऐसी चेतना जो हर इंसान (स्त्री/पुरुष) में पग-पग पर किसी न किसी रूप में मौजूद है....तभी हम खुद को जोड़ पाते हैं उनसे...कभी प्रेम दिखाते हैं तो कभी गुस्सा करते हैं,कभी चिरौरी करते हैं तो खुद रूठ भी जाते हैं,उन्हें डराते-धमकाते हैं,उन्हीं से लड़ते-झगड़ते हैं...क्या-क्या नहीं करते उनके साथ फिर भी और वो बेचारे मौन हो कर सब मान जाते हैं ! उन्हें हम किसी रूप में भी पा सकते हैं....माँ से आरम्भ हो कर कृष्ण का प्रेम जीवन के हर परिपेक्ष में नज़र आता है....प्रेम को जितने भी रूप में दर्शाया जा सकता है....कृष्ण अपनी मोहक मुस्कान के साथ उस जगह उपस्थित हैं...! अपने व्यक्तित्व में से अपने अनुरूप स्वरुप का चुनाव करने का कृष्ण खुद हमें अवसर प्रदान करते हैं....तभी तो वासुदेव-देवकी,नन्द-यशोदा राधा-मीरा,गोप-गोपियाँ,सुदामा-उद्धव,कुंती-द्रौपदी,अर्जुन और हम सब उनके मोहपाश से दूर नहीं रह पाते..!

                         कृष्ण रुपी चेतना हमारे जीवन में वात्सल्य,प्रेमी,सखा,बन्धु-बांधव, शिक्षक, इंसान,और भगवान भी....हर रूप में प्रस्तुत है...!! जीवन का उत्सव है कृष्ण,प्रेम की पराकाष्ठा हैं कृष्ण,मित्रता का उत्कृष्ट उदाहरण हैं कृष्ण,गुरु का गंभीर ज्ञान हैं कृष्ण... और शायद और भी बहुत कुछ !! जहाँ तक सोचा जा सकता है इंसान के स्वरुप को....भगवान की संभावनाओं को.....हमारे मुरली वाले वहीँ पर मोहक मुस्कान लिए प्रकट हो जाते हैं....!!

                         विमलेन्दु....आपको धन्यवाद दूँगी...सोचना और बात है और लिखना और...! इतना आपने लिखवा लिया मुझसे...शायद ही मेरी लेखनी यहाँ तक पहुँच पाती......आपकी वजह से ये संभव हो पाया है.....!

जय श्री कृष्ण ...!!!



4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर पूनम जी.....
    तभी न लोग दीवाने हैं कान्हा के प्रेम में....

    शुभकामनाएं
    अनु

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  2. बहुत ज्ञानवर्धक लेख के लिए बधाई पूनम जी |
    आशा

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  3. बहुत ही सटीक व सार्थक आलेख

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  4. बहुत ही प्यारा आलेख, पढ़कर एक आत्मिक आनन्द मिला, लगा कोई आपके निकटस्थ की प्रशंसा कर रहा है।

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