गुरुवार, 28 जून 2012

वजूद ...........




न मैं लैला,न मजनू तुम
न मैं हीर, न ही फरहाद तुम 
जीवन की आपधापी में
हमारा प्यार परवान न चढ़ सका,
मोहताज़ हो गया खुद अपना....
खुद अपना ही !!
अपना ही अस्तित्व न संभाल सका,
और खो गया कहीं ....
आहिस्ता अहिस्ता अपने ही बीच.
अपना ही वजूद तलाशते हुए
समाज के बनाये हुए बंधनों में....!!
और आज ...
आज भी खोज जारी है
अपने  ही वजूद की....
अपने ही प्रेम की ,
जो हमारे ही भीतर है 
फिर भी ....
हम उसे खोज रहे हैं 
कभी कहीं बाहर ....
कुछ अपनों के बीच...
कुछ बेगानों के साथ....!!

11 टिप्‍पणियां:

  1. खोज तो चलती ही रहती है अनायास...!
    सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  2. प्यार की सुन्दर परिभाषा देती ये पोस्ट लाजवाब है

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  3. प्रेम की खोज तो निरंतर जारी रहती है .. सही पड़ाव आने पे स्वत ही रुक जाती है ...

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  4. यह खोज इसी तरह चलती रहती है...जब तक खुद से मिलना नहीं होता....

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  5. खोजते खोजते थक जायेंगी तब देखेंगी कि पास बैठा आपका अपना वजूद भी हांफ रहा है.......

    :-)

    सस्नेह
    अनु

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  6. कुछ अपनों के बीच
    कुछ बेगानों के बीच ....

    अच्छी है कविता सच्ची में

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  7. आज भी खोज जारी है
    अपने वजूद की...

    सुन्दर रचना...
    सादर।

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