रविवार, 20 नवंबर 2011

तलाश.......




हर इंसान की जिन्दगी कुछ तलाशने में ही गुज़र जाती है....वह तलाश कुछ भी,किसी भी चीज़ की हो सकती है....शारीरिक ज़रूरतों की,सांसारिक सुख-सुविधाओं की.मानसिक सुख की,ख़ुशी की,emotional support की, perfect relations की,एक perfect soulmate की, आधात्मिक सुख की, भगवान् की....और भी न जाने क्या-क्या...???
       पूरी जिन्दगी सिलसिला चलता रहता है इसी तलाश का....कभी कुछ मिलता है तो कभी कुछ छुट जाता है !! निदा फ़ाजली जी का एक शेर है..."कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता.."और हर इंसान इसी "मुकम्मल" लफ्ज़ को जिन्दगी मुकम्मल करने के लिए हर जगह,हर इंसान और हर रिश्ते में कुछ तलाशता रहता है....फिर भी कहीं कुछ मिलता है तो कहीं कुछ....और तलाश चलती रहती है !!
            इंसान ही क्यों....इस दुनिया में जो भी आया है....वह चाहे किसी भी रूप में हो,उसका जाना निश्चित है...फिर चाहे शमा हो या परवाना,आग हो या पानी,पत्थर हो या मोम,साधु हो या शैतान,भगवान् हो या इंसान या फिर और भी किसी रूप में इस धरती पर शरीर धारण करके आया हो !! परन्तु जाते-जाते कितना तृप्त और कितना अतृप्त होगा ???...शायद वह खुद नहीं जानता....!!और उस तृप्तता को पाने के लिए हर जगह,हर इंसान,हर रिश्ते में कुछ तलाशता रहता है....शमा को परवाने की तलाश है तो परवाने को शमा की,आग को लहकने के लिए हवा की तलाश है तो पानी को तलाश है किसी नदी या समंदर की,पत्थर को तलाश है  कि कोई उसे मूर्ति में ढाले और मोम को तलाश है एक सांचे की जिसमें ढल कर वह शमा की तरह जल उठे,साधु को भगवान् की तलाश है तो शैतान को भगवान् और इंसान दोनों की,भगवान् को भी तलाश है भक्त की और एक इंसान क्या तलाश रहा है...यह वह ज़िंदगी भर नहीं जान पाता...!! कभी लगता है कि सब मिल गया,कभी लगता है कि कहीं कुछ है जो मिलना बाकी है...और इस तरह तलाश जारी रहती है क्योंकि इसका दायरा इतना बड़ा है कि गिनाना मुश्किल है.....शारीरिक सुख हैं तो मानसिक नहीं,सांसारिक सुख है तो आध्यात्मिक नहीं.....!! आध्यात्मिकता की भी अपनी अलग ही तलाश है....और यह तलाश जारी रहती है मृत्यु पर्यंत... और उसके बाद भी.....फिर एक नई जिन्दगी और फिर वही तलाश !!!

लेकिन कब तक.......???

14 टिप्‍पणियां:

  1. sukh bahut kuchh soch par
    nirbhar hotaa hai
    aapkaa sukh kaa paimaanaa kyaa hai ?
    uskee paribhaashaa kyaa hai ?
    aavashktaayein kam ho to bhee sukh kaa milnaa aasaan ho jaataa hai

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  2. sahi kaha apne..
    lekin yah tay bhi hamen khud hi karna padta hai!
    aur agar kahin kuchh kamee lagtee hai to hamen khud ke aandar hi dekhna hoga..jhankna hoga...!!
    sukh ki koi paribhasha nahin...koi maap nahin !!

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  3. it is matter of research...why people run after money....knowing the fact that we are mortal/
    plz visit my blog...punam jee

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  4. सबका साम्य कहाँ से आयेगा, कहीं न कहीं कुछ छूट जाता है।

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  5. आदरणीया पूनम जी,
    तलाश है तो जीवन है.तलाश ख़त्म तो ज़िन्दगी ख़त्म.
    तलाश अपूर्ण होने की वज़ह से शुरू होती है.
    पूर्ण होने का अहसास ही अध्यात्मिक तलाश का अंत है.

    संतुष्टि तलाश न होने में ही है.सुख इच्छा रहित होने में है.
    लेकिन यह साधन कठिन ही है.

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  6. तलाश निरंतर चलती है ...जब तक कि शाश्वत सत्य नहीं आ जाता .. और सत्य केवल एक ही है ..जो आया है उसे जाना ही है ...

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  7. कहीं तो मंजिल होगी.....तलाश जारी रहती है हरेक की...

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  8. दरअसल हर चीत की तलाश मन से शुरू हो कर मन तक ही ठहरती है ... सब कुछ मन के अंदर ही है ..

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  9. कुल मिला के निचोड़ ये है की...........कुछ भी सदा के लिए नहीं होता|

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  10. महान् दार्शनिक पूनम जी को
    मेरा प्रणाम ! नमन ! सस्नेह अभिवादन !

    आपने सारी बातें मेरे मन की कहदी हैं …इस पोस्ट केलिए विशेष आभार स्वीकार करें …

    और हां ,आपकी तमाम काव्य रचनाओं को अभी पढ़ा है … पिछले घंटे डेढ़-दो में … खो गया हूं … कमेंट न भी लिख पाऊं तो भी सब रचनाओं के लिए सलाम मानिएगा ………



    शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  11. आध्यात्म के मूल में जाए तो हम सभी परमात्मा से ही अलग हुए इकाई हैं जो उसी को जीवन पर्यंत खोजता रहता है जिसे तलाश कहा जाता है. जब तक उसको पा न ले ये तलाश जन्म-जन्म तक चलता रहता है.

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  12. ओ रे ताल मिले नदी के जल में,नदी मिले सागर में
    सागर मिले कौन से जल में, कोई जाने ना
    ओ रे ताल मिले नदी के जल में.

    अदभुत है आपकी प्रस्तुति.
    तलाश जारी है ...
    आनंद की ?
    या फिर परमानन्द की?
    आप ही बताईयेगा न.

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  13. आखिर जब हर जगह तलाश ही है तो क्यों ना उस शाश्वत कि तलाश में ही कदम आगे बढ़ाये जाएँ ..जो खुद में ही है !
    सोंचने पर मजबूर करती रचना ...शुक्रिया पूनम जी !

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  14. आदरणीया पूनम जी,
    तलाश है तो जीवन है.तलाश ख़त्म तो ज़िन्दगी ख़त्म.
    तलाश अपूर्ण होने की वज़ह से शुरू होती है.
    पूर्ण होने का अहसास ही अध्यात्मिक तलाश का अंत है.

    संतुष्टि तलाश न होने में ही है.सुख इच्छा रहित होने में है.
    लेकिन यह साधन कठिन ही है.

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