गुरुवार, 3 नवंबर 2011

एक दीवाली ऐसी भी....



लगा के आग घर को रौशन करें मोहल्ले को !
इस   बार  ऐसे  कुछ   दीवाली   मनाई   जाये !!

जुबान चलाओ कुछ ऐसे के तेज़ धार हो इसकी !
बिना तलवार औ खंजर के क़त्ल-ए-आम हो जाये !! 

तुम अपने दिल की सुनो हम करें फिकर अपनी !
छुपी  है  बात  जो  अब  तलक   वो  आम  हो  जाये !!



7 टिप्‍पणियां:

  1. आखिरी शेर सबसे उम्दा|

    जवाब देंहटाएं






  2. आदरणीया पूनम जी
    सस्नेहाभिवादन !

    तुम अपने दिल की सुनो, हम करें फ़िक़्र अपनी

    बहुत शानदार ! …लेकिन इतनी ही पंक्तियों के बाद आपने कलम क्यों रोक दी ?
    बहुत अच्छा जा रहा था …


    बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी कविता !

    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है,कृपया अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
    http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html

    जवाब देंहटाएं