मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

मुक्त-------

 

अहंकार,ego!! कैसा लगता है सुनने  में ?? अजीब सा न ??एक अजीब सा व्यक्तित्व सामने आ जाता है-stiff,तना हुआ सा,गर्दन ऊंची,अकड़ी हुई....और भी क्या क्या ?? आप कुछ भी सोच सकते हैं,किसी  भी हद तक !! सच में,ये अहंकार,ego है क्या ??कह पाना बड़ा मुश्किल होता है.जब दूसरे में हो तो साफ़ नज़र आता है,और अगरअपने में हो तो......??बड़ी मज़ेदार है ये दुनिया!! ईश्वर ने जैसी भी बनाई है...बड़ी सुन्दर है.भिन्न-भिन्न 
स्थान,वहां की प्रकृति,जलवायु,वातावरण,खानपान और किस्म किस्म के लोग,उनकी प्रकृति,प्रवृत्ति,स्वभाव और साथ ही साथ जीवन में रोज़-रोज़ घटने वाली घटनाएं और उनसे उत्पन्न परिस्थितियाँ.....!! अब ये आप पर है कि आप उनसे कैसे दो-चार होते हैं..!!बेहतर यही है कि आप खुद को उन्हीं के हिसाब से ढालते चले जाएँ,
जीवन में होने वाली रोज़-रोज़ की  घटनाओं  को  साक्षी  भाव  से  देखें  और उन्हीं के अनुसार जीवन को नदी की तरह अपना  गंतव्य  बनाने  दें. अगर आप बहने के लिए तैयार नहीं होंगे तो आपके  स्वाभिमान  को  अहंकार  का जामा पहना कर आपको समाज के सामने पेश करने के लिए भी  लोग तैयार ही बैठे हैं....अब आप के ऊपर है कि आप स्वाभिमान बचाना चाहते हैं और अभिमानी कहलाना पसंद करेंगे,या जिंदगी के साथ बहने को तैयार हैं?? 
                 वैसे स्वाभिमान और अहंकार में ज़रा सा फर्क है-स्वाभिमान खुद के लिए और अभिमान या अहंकार दूसरों के दिखाने के लिए होता है!!ज़रा सा इधर से उधर हुए  कि............!!!                                                                                    कई बार ज्यादा स्वाभिमान कब चुपके से अहंकार में बदल जाता  है कि पता ही नहीं चलता.......!!
                              बहुत नम्र दिखने वाला व्यक्ति भी अहंकारी हो सकता है. नम्रता का, अच्छा  होने का भी अपना ही अहंकार होता है और अच्छा होने का अहंकार(ego) बुरा(खराब) होने से कहीं ज्यादा होता है.
बुरे व्यक्ति को कभी न कभी जिंदगी में ये एहसास  हो ही जाता है कि उसने कुछ गलत भी किया है और एक transformation की,एक परिवर्तन की संभावना रहती है और अच्छा आदमी तो............!!जिंदगी भर इसी सोच में रहता है कि वह तो अच्छा ही है,बाकी सारे गलत हैं फिर change किसको होना है,परिवर्तन किसमें होना है और उंगली दूसरे की तरफ उठ जाती है.हम रोज़ अपने 
इर्द-गिर्द ऐसे ही लोगों का,ऐसी परिस्थितियों का और ऐसी ही घटनाओं का सामना करते रहते हैं और खुद भी तो ऐसा ही करते हैं. भले ही खुद को सही माने,या गलत.....लेकिन उंगली हमेशा सामने वाले पर ही उठाते हैं.अच्छा करते हैं तो सामने वाले को दिखाते हैं कि मैंने कितना अच्छा किया और गलत किया तो सामने वाले को बताते हैं
कि उसकी वज़ह से,उसके व्यवहार से हम गलत करने को प्रेरित या बाध्य हुए.....! बहरहाल अपने जीवन में होने वाली घटनाओं की,यहाँ तक कि अपने व्यवहार की पूरी-पूरी जिम्मेदारी
हम ही नहीं लेते...!उन्हें समय,व्यक्ति,परिस्थिति और घटनाक्रम के हिसाब से विभिन्न खांचों में डालते रहते हैं.किसी ने ठीक ही कहा है कि जीवन में हम अपने इर्द-गिर्द तरह-तरह की खूँटियाँ टाँगे हुए हैं....!व्यक्ति,परिस्थिति,और घटनाओं के रूप में और हम अपने कर्म और व्यवहार को अपने अनुसार इन खूंटियों पर टांग कर निश्चिन्त हो जाते है. अपने आप को मुक्त करने का इससे अच्छा और सरल उपाय नहीं है हमारे पास !!!
तो फिर तैयार हो जाइए और अपने आस-पास कुछ ऐसी ही खूँटियाँ लगा लीजिये और अपने कर्म और व्यवहार को उन अलग-अलग खूंटियों पर टांग कर मुक्त हो जाइए !!!

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सारगर्भित आलेख.
    ढेरों बसंतई सलाम.

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  2. "मैं ही गलत क्यों हूँ??" दूसरा मेरे से बड़ा है क्या????मेरे हिसाबस इ यही अहंकार है.....

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  3. बसंत पंचमी की शुभ कामनाएं.
    बहुत ही सुंदर

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  4. बेहद प्रभावशाली और सटीक आलेख
    ढेरो शुभकामनाएं !

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  5. आदरणीय पूनम जी
    अहंकार के बारे में आपने बहुत गंभीरता से विचार किया है ....सच है अहंकार बहुत से मानसिक दुखों का कारण है ...आपका आभार इस सार्थक प्रस्तुतीकरण के लिए

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  6. आप सभी का मेरे ब्लॉग पर आने का और उस पर अपनी बहुमूल्य टिप्पणी देने के लिए धन्यवाद !!
    हम सभी ज्यादातर अपने अनुभव,अपने जीवन में घटने वाली घटनाओं और कुछ कल्पनाओं के आधार पर लिखते है......!!मेरी रचनाएं अपने अनुभव,व्यक्ति और परिस्थिति के अनुसार मेरे ज़ेहन की उपज हैं...!!आप की सहमति और असहमति दोनों ही आदरपूर्वक स्वीकार हैं...!! आप सभी का शुक्रिया !!

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  7. पूनम जी, आपके विचारों की गहराई पाठक को बांध सी लेती है। सार्थक प्रस्‍तुति के लिए बधाई स्‍वीकारें।

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    ब्‍लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।

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  8. अहंकार और स्वाभिमान का बहुत सुंदर विश्लेषण किया आपने

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