शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

मौन...........तब और अब...



मौन...........
तब--अप्रैल,१९८४

मौन  भी  अभिव्यक्ति  है  !
यदि  तुम  समझ  सको  तो  !!
मैं  क्या  कहूं  ?
कैसे  कहूं ?
कब  कहूं  तुमसे ?
जानती  नहीं  !
शायद....
कभी  न  कह  सकूं
अपने  मन  की बातें !
तुम्हें  स्वयं  समझाना  होगा -
मुझे  और
मेरे  मौन  को  भी .
पढ़नी  होगी  मेरी  आँखों  की  भाषा ,
शायद---
ये  मेरे  मौन  को  कुछ  शब्द  दे  सकें .
समझनी  होगी  तुम्हें
मेरे  होठों  की  थरथराहट ,
शायद  ये  मेरे  शब्दों  को  स्वर  दे  सकें .
मेरे  मौन  को  
यदि  तुम  नहीं  समझ  सके  
तो  कौन  समझेगा ?
शायद  मैं -
मन  की  बात  कभी  न  कह  सकूंगी !
यही  आशा  है  तुमसे
कि तुम  मेरे  अस्तित्व  को  
अपने  में  समेट  लो !
इसीलिए  आई  हूँ  तुम  तक
कि  तुम....
मेरी  मूक  अभिव्यक्ति  को  समझ  सको !!


मौन..........
अब---2008

मौन  भी  अभिव्यक्ति  है !!
अब  ये  समझे  हो  तुम  !!
शायद  उस  समय.....
मैं  अपरिपक्व  थी  या  फिर  तुम....
पता  नहीं....??
चलो,मेरा  ये  इंतज़ार  भी  
ख़त्म  अब  हुआ.....!!
इतना  लम्बा  अरसा  बीत  गया
पर  मौन  की  भाषा  
अब  समझे  तुम..!!
किसी  की आँखों  की,
किसी  के  कांपते  होंठों  की ,
और  किसी  के  स्पर्श  की  सरसराहट
ये  अभिव्यक्ति  तुम्हें  दे  पाई.....
गनीमत  है,
इस  ज़िन्दगी  में.....
तुम्हारी  ये  अपूर्णता तो   
पूर्ण  हो  पाई...!!!



12 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!बधाई हो उसने मौन की भाषा समझ तो ली…………अभिव्यक्ति को सम्पूर्णता मिल तो गयी…………अन्दाज़-ए-बयाँ खूबसूरत रहा।

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  3. सार्थक और बेहद खूबसूरत,गहन चिंतन को दर्शाती भावपूर्ण प्रस्तुति......शुभकामनाएं।

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  4. मौन तब और मौन अब.
    मौन के भी अर्थ बदल जाते हैं.

    बहुत गहन एवं नए आयाम की कविता.
    आपकी कलम को सलाम.

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  5. इतने वर्षों में ही सही मौन को समझा तो ..बहुत अच्छी लगीं दोनों रचनाएँ ..

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  6. मौन पर दोनों रचनाएँ सुन्दर हैं.

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  7. मौन की भाषा यदि पहले ही समझ ली होती तो अभिव्यक्ति के दो छोर इक साथ केसे नजर आते :)
    मौन की अभिव्यक्ति की दोनों अत्युत्तम है !

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  8. बहुत ही खुबसुरत प्रस्तुति......

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  9. बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..

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