रविवार, 30 जनवरी 2011

ज़ज्बात................




आयेगा कैसे लौट के तू मेरे हमकरीब !
अल्फाज़ तेरे इस तरह काँटों से भरे हैं !!

तू देख मुझको और खुद को आज और सोच..
दरम्यान हमारे  फासले ये  कैसे बने  हैं  ??

गुजरी है जिंदगी कुछ इस तरह से दोस्तों !
दामन में चंद खुशनुमा ज़ज्बात बचे हैं !!

करते हैं मुझको छोड़ वो कहीं और गुफ्तगू !
मेरे  लिए  तो एक  फकत  आप  बचे हैं !!

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना धन्यवाद|

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  2. तू देख मुझको और खुद को आज, और सोच
    दरम्यान हमारे फासले ये कैसे बने हैं

    खूबसूरत भाव
    और बहुत अच्छी रचना

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  3. बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
    आपकी कलम और आपके जज़्बात को शुभकामनायें

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