रविवार, 31 अक्टूबर 2010

अच्छाई और बुराई...
हर इंसान में
बराबर से बाँटता है ईश्वर.
कभी....
किसी में थोडा ज्यादा..
 किसी में थोडा कम,
कभी सोचा है आपने-
कि
आपसे अच्छे से पेश आने वाला
किसी और के लिए
दुखदाई भी हो सकता है
और आप खुद भी तो
किसी के लिए अच्छे
और किसी के लिए बुरे होते हैं
तो...
 किसने  ये हक दिया हमें
कि-
 हम नापें,तोलें,तुलना करें
 किसी की किसी से
और फिर लग जाये
उस को बदलने में
कभी भीतर  से-
 कभी बाहर से,
 खुद को नज़रंदाज़ करके
किसी और के
व्यव्हार का नापा-जोखा करें
और फिर...
सीधे-सीधे ये फरमान जारी करे
कि फलां कितना अच्छा है
और फलां कितना बुरा...
 जबकि सामने वाले की तरह ही
अच्छाई  और बुराई
हमारे  भीतर  भी है
कभी सोचा है कि
 सामनेवाला भी
हमें हमारी ही नज़र से
 देखता होगा.......................................
ज़िन्दगी की बिसात पर..
मोहरे हैं हम,
कभी  सिमटे  हुए
तो...
कभी बिखरे हुए.
लोग  न  जाने क्या-क्या
सोच लेते हैं हमारे बारे में...
जबकि-
उन्हें खुद नहीं पता
कि..
वो क्या हैं खुद....???

गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010

आज की  शुरुआत, बस यूँ...ही....
ये  मुलाकात, बस यूँ...ही....
क्या करूँ मैं बात, बस यूँ... ही....