सोमवार, 29 जनवरी 2018

रूह को किसने देखा है...





होठों को भींच लेने से क्या होगा...
तुम्हारा नाम जो
मुसलसल दिल ही दिल में...
लिया जा रहा है...
उसे कैसे बंद करे कोई...!
क्या मिट सकेगी तुम्हारी पहचान मिटाने से...
वो ढुलके हुए आँसुओं के नमकीन निशान...
गालों पर सूख तो गए
लेकिन आज भी नज़र आते हैं...!
वो तपते लबों की आंच....
वो बाँहों की पकड़...
नील भले ही न नज़र आये तन पर....
लेकिन वो एहसास आज भी है...
जो तुम इन सबके साथ
छोड़ गए हो मेरे पास... !
रूह को किसने देखा है...
प्यार के लिए
ये जनम ही काफी है...!
है न....!!



***पूनम***

23 जनवरी, 2016