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मंगलवार, 22 मार्च 2011

क्या लिखूं.....??




आज-
फिर लिखने को
मन कर रहा है....
पर क्या लिखूं?
समझ नहीं
नहीं पा रही हूँ...!
क्या करूँ.....??
शायद-
तुम ही दे सको
लिखने को मुझे कुछ !!
यह सोच कर
एलबम से निकालती हूँ तुम्हें !!
पर...
तुम्हें देखा तो
यूँ लगा
जैसे तुम-
मुझमें ही
कुछ खोज रहे हो..!!
एक सिहरन,
एक थिरकन सी....
और काँप गई मैं !!
नहीं,
यूँ नहीं !
तुम नहीं लिखने दोगे
आज भी मुझे,
कल जब तुम्हें
फिर से
एलबम में
बंद कर दूँगी,
तब फिर से
कुछ सोचूँगी मैं......
लिखने के लिए !!



शुक्रवार, 18 मार्च 2011

पुराने पन्नों से.........

 

प्रत्येक मंदिर की नींव में रखी हुई हर ईंट उतनी ही महत्त्वपूर्ण होती है जितना कि उस मंदिर के ऊपर चमकता हुआ गुम्बद..!! अब अगर गुम्बद खुद पर इतराए कि मंदिर की सुन्दरता उसी से है तो कहाँ तक सही है...!! अगर हम नींव में रखी गई ईंटों में से एक भी ईंट को उसकी जगह से थोड़ा सा खिसका दें या पूरा ही हटा दें तो पूरे मंदिर की इमारत हिल जायेगी या फिर ढह भी सकती है..!! ये कितने लोग समझते हैं या जो समझते है वो भी अनजान बने रहते हैं !!
                                                          इस जीवन में हर कोई अपने-अपने स्थान पर महत्त्वपूर्ण है चाहे छोटा हो या बड़ा !! संसार की हर छोटी से छोटी चीज़ उतनी ही अहमियत रखती है जितनी कि बड़ी....ईश्वर ने सभी को किसी न किसी उद्देश्य से बनाया है..!! संसार का कोई भी प्राणी,कोई भी वस्तु किसी भी चीज़ को उतना over  power नहीं करती है जितना कि इंसान...!! एक इंसान ही है जो अपने मन मुताबिक न होने पर किसी की अवहेलना कर सकता है और बेवज़ह over  power करने की कोशिश भी करता है क्यूंकि उसे हमेशा लगा रहता है कि कहीं कुछ है जो उसके हाथ से निकलता जा रहा है...!! बस वहीँ से उसे हर चीज़ को अपनी मुट्ठी में करने की चाह होने लगती है...चाहे वह किसी पद पर हो,घर हो,परिवार हो,समाज हो या फिर इससे भी बड़ा दायरा हो,छोटा हो,बड़ा हो....समय,परिस्थितियाँ और स्थान अलग-अलग हो सकते हैं...लेकिन करते  सब यही हैं !! ऐसा करके उसे लगता है कि सब उसके control में है...लेकिन यह उसका भ्रम होता है..!! ज़बरदस्ती कण्ट्रोल की हुई वस्तु,परिस्थिति और इंसान यहाँ तक कि रिश्ते भी कभी-कभी बेलगाम हो जाते हैं...और फिर शुरू होता है सिलसिला stress और frustration का....साथ ही साथ और भी न जाने कितने problems....कुछ शारीरिक (संवेदनात्मक), कुछ मानसिक (भावनात्मक)... और फिर दोषारोपण कभी समाज पर,कभी परिस्थिति पर,कभी साथ में रह रहे लोगों पर और अगर कुछ न मिले तो ईश्वर और भाग्य तो है ही....!!
            लेकिन कब तक..?? कब तक दोषारोपण करेंगे..?? कब तक भाग्य और भगवान को दोष देंगे..?? उन्हें यही लगता है कि उन्होंने कितना दिया...??  कितना दूसरों के लिए कितना किया..?? बदले में उन्हें दूसरों ने क्या दिया..?? हमारे जीवन में न जाने कितने लोग मिल जायेंगे यही कहते हुए...बताते हुए...!! और हमारी सारी सहानुभूति भी जुड़ जाती है उनके साथ....क्यूंकि हम खुद को उनकी जगह पर रख कर उन्हें सुनते और समझते हैं...हमारी सारी भावनाएं उनके साथ जुड़ जाती हैं  और हम अपने आप  को भी उनसे co-relate कर पाते हैं इस स्तर पर....!!
                                     तो क्या उन्होंने जीवन में सिर्फ दिया ही...?? क्या उन्हें जीवन में किसी से कुछ नहीं मिला..?? क्या उन्होंने सिर्फ दिया ही..लिया कुछ नहीं किसी से..?? आजतक उन्होंने जीवन  में जो भी हासिल किया क्या उसमें किसी का भी योगदान नहीं रहा...?? लेकिन इतना सोचने की किसे फुर्सत और ज़रुरत है !! इससे मन और दिमाग पर जोर भी पड़ता है और अहं को भी तो ठेस लगती है.....और फिर यह सब न सोच कर बड़े आराम से दूसरों की अहमियत को नकार दिया जाता हैं..!!
                                                  अपने जीवन में हमें जो मिला हमारे लिए  वही ठीक है....यह न मान कर जब तक हम बाहर कुछ खोजते रहेंगे,जो है उसे नज़रन्दाज़ करके कुछ और के पीछे भागते रहेंगे और जब वह नहीं मिले तो उसका दोष दूसरों पर या भाग्य पर डालते रहेंगे...जब तक हम ईश्वर के प्रति thankful नहीं होंगे और परिस्थिति और समयानुसार खुद को ढाल नहीं लेंगे....तब तक समय और परिस्थिति हमारे अनुकूल व्यवहार नहीं करती हैं....!! ईश्वर के प्रति कृतज्ञता के साथ समय और परिस्थिति को दोष न देकर  बेहतर है कि खुद को हम उनके अनुसार बदल डालें....!! ईश्वर ने हमें बुद्धि और विवेक इसीलिए तो दिया है कि हम उसका समय रहते उपयोग करें..!!
                         इस संसार में कुछ भी बेमानी नहीं है...!! जीवन में हर इंसान,हर रिश्ता,कोई वस्तु,या कोई घटना...समय पर ही घटती  है...!! यहां तक कि ज्ञान भी उसी समय मिलता है जब उसकी ज़रुरत होती है....अब यह हमारे ऊपर है कि हम उसका इस्तेमाल कब और कैसे करते हैं...हम उसे use  करते हैं.....या misuse...!!

अप्रैल,२००९

मंगलवार, 15 मार्च 2011

शायद....................





खूबसूरत सी शाम ढलने को आई,
तुम साथ न हो के भी साथ थे !
कहीं दूर तुम कहीं दूर हम,
हमारे साथ केवल हमारे एहसास थे !!

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तुमने मुझे छुआ नहीं
फिर ये सिहरन कैसी !
शायद ये हवा का झोंका
तुम्हारे पास से आया होगा !!

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प्यार का एहसास भी
कुछ अजीब सा होता है
जो न हो सामने
वो दिल के करीब होता है !!
हाथ न छू सकें
क्यूँ दिल उसे महसूस करे..
क्या कहें.....??
ये रिश्ता ही अजीब सा होता है !!



शनिवार, 12 मार्च 2011

बस यूँ ही..........





कुछ इस तरह से
निभाई है दोस्ती हमने !
रहे न हम किसी के
खुद से भी
करली दुश्मनी हमने !!
दुहाई देते रहे
ज़िंदगी  भर मुहब्बत की हम जिसको !
न की खुद 
अपनी ही मुहब्बत से
दोस्ती हमने !!

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ज़िंदगी भर तूने की अपनी ही मनमानी सनम !
दोष देता है तू क्यूँ हर वक़्त दूजे को सनम  !!

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बन पतंगा तू जला
शम्मा किसी के बज़्म की थी !
दोष देता तू रहा
शम्मा को अपने बज़्म की ही !!

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एक पतंगे की किस्मत में रोज़ कहाँ है जल जाना !
लेकिन शमा जली है हर एक रात नया एक परवाना !! 



बुधवार, 9 मार्च 2011

तू...........






मिट गई तेरे ह्रदय में,
डूब कर सब पा लिया हैं !
हाथ फैला तेरे आगे,
थाम कर अपना लिया है !!
ना कभी सोचा था मैंने,
तू है इतना पास मेरे !
जब,जहाँ चाहूँ,तुझे पाऊँ,
नयन बस मूँद मेरे !!
तू हमारा जब सहारा,
फिर किनारा दूर है कब !!
हाथ बढ़ा स्पर्श कर लूं,
जब,जहाँ चाहूँ,वहां तब !!


शनिवार, 5 मार्च 2011

चुपके से..........





आसान  बहुत......
मन से मन की
कह देना !
मन कह दे तो-
मैं सुन लूंगी !!
खामोश ही रहना
अपनी जुबान से
न कहना कुछ
बस चुप रहना....
मन सुन लेगा,
मैं सुन लूंगी !!
न जाने कितना
कहा-सुना,
न आया अबतक
काम कभी !
जो मन समझे
तो सबकुछ है,
न समझे तो
बेकार सभी !!
बस आज
मेरी पलकों पर
धर के अपने अधर
तुम पास बैठ
न कुछ कहना !!
मन समझेगा...
मैं समझूँगी !!
आसान बहुत है
मन से मन की
चुपके से कह देना.....
तू कह दे तो
मैं सुन लूंगी !
गर तू सुन ले...
तो कह  दूँगी !!